Monday, December 26, 2011

पेट भर खाना नहीं है....


किसी को मिला है इतना की उसे लुटाने का बहाना नहीं है।

और कोई इतना है मजबूर की उसे पेट भर खाना नहीं है।


किसी के आंखों से हर पल बहता है खारा पानी।

कोई एसा भी है जिसकी हंसी का ठिकाना नहीं है।


लोग क्यों तुम्हें(डॉक्टर) खुदा का दूसरा रुप कहते हैं।

जब इक मरते हुए इंसा को तुम्हें बचाना नहीं है।


क्यों तुम कई(सरकार) योजनाएं बनाते हो लोगों के लिये।

जब जरुरत मंदों तक उन्हें तुम्हें पहुंचाना नहीं है।


लोग क्यों एक गरीब को देखते है दूसरी नज़रों से।

जब अपने हिस्से की एक रोटी उन्हें खिलाना नहीं है।


कड़ाके की ठंड है और वो जनता का हितैषी बनते है।

जरा देख कैसे रहते है वो जिनका कोई आशियाना नहीं है।


हर साल इस भूख से मरते है न जाने कितने लोग।

ये कलंक है हमपर, पर हमें इसे मिटाना नहीं है।

खुदा भी बसता है बस अमीरों के घरों में।

इन गरीबों का तो यहां कोई ठिकाना नहीं है...

---दिलीप---



Saturday, December 10, 2011

क्यों ज़रा सी बात पे लोग मिटा लेतें हैं खुदको।

यूं हर पल सबकी तमन्नाएं होती पूरी तो नहीं।

आंखों में सपने लेकर जीता तो है हर कोई।

पर हर सपने हकिकत बन जाएं ये ज़रूरी तो नहीं ......

---दिलीप---

Saturday, October 1, 2011

क्यों किसी के हिस्से में है खुशी किसी के गम....



किसी की किस्मत में हैं उजाले भरे दिन।

किसी की किस्मत में अंधरे भरी रात है।


किसी की हथेलियां हैं बरसों से खाली।

किसी के हाथों में अपनों का हाथ है।


कोई चाहकर भी नहीं मिल पाता अपनों से।

कोई हर रोज करता अपनों से मुलाकात है।


किसी को नहीं मिलती एक पल की भी खुशी।

किसी को मिलता हर पल हसी सौगात है।


कोई ये नहीं जानता कि ये रोना क्या है।

किसी के आंखों से होती अंसूओं की बरसात है।


क्यों किसी के हिस्से में है गम किसी के खुशी।

जबकी सुना है खुदा रहता सबके साथ है।

---दिलीप--

Friday, August 26, 2011

एक दिल की तमन्ना......


आंखों में उनकी सूरत दिल में उनका फसाना है।

ये मेरा नादान दिल बस उन्हीं का दिवाना है।


क्या हुआ जो अभी वो दूर रहा करती हैं मुझसे

एक दिन उन्हें वापस मेरे ही पास आना है।


हर पल इस दिल की बस यही है तमन्ना।

कभी न कभी उन्हें अपना बनाना है।


डर लगता है उन्हें कोई छीन न ले मुझसे

उनकी सूरत को अपनी आंखों में छुपाना है।


मेरे अपने कहते है ए नई नई दिल्लगी है।

क्या जाने वो की ए रोग बहुत पुराना है।


प्यार करने वालों को क्यों मिलती है मौत।

क्यों होता इतना बेदर्द ए जवाना है।


क्यों लोगों ने बनाई है अमीरी गरीबी की दिवार।

सब जानते है इक दिन सबका एक ही ठिकाना है


लोग कहते हैं मेरे चेहरे पर वो हसी न रही।

आज मुझे भी दिल खोलकर मुस्कुराना है।


खुदा तेरा उम्र भर एहसान रहेगा मुझपर।

तुने मुझे जो दिया इतना हसी नज़राना है।

--दिलीप--

Thursday, August 4, 2011

ज़िन्दगी की दौड़ में न जाने मैं कहां आ गया




कुछ रिश्तों को खोया कुछ रिश्तों को पा गया।

ज़िन्दगी की दौड़ में न जाने मैं कहां आ गया।


कभी-कभी इस चकाचौंध से सहम सा जाता हूं।

जब हज़ारों की भीड़ में खुद को तन्हा पाता हूं।


हमारे लिए तो वो बचपन का दिन ही प्यारा था।

टूटा- फूटा ही सही पर वो घर तो हमारा था।


जब देखता हूं मुड़कर आंखे भर जाती हैं।

घर के आंगन में बैठी मां नज़र आती है।


जी करता है मां कहकर गले से लिपट जाऊ।

बिना उनके दिल नहीं लगता है उनकों ये बताऊ।


आंखे खुलते मां का चेहरा धूंघला नज़र आता है।

फिर वहीं अकेले पन का डर मुझकों सताता है।


हकिकत से होते ही रुबरू आंसूओं को बहा गया।

ज़िन्दगी की दौड़ में न जाने मैं कहां आ गया।

---दिलीप---

बस सोच और कुछ नहीं....



हर रोज मिलते हैं हज़ार लोग मुझसे।

एक उन्हीं का चेहरा नज़र आता नहीं है।


जाने मैं खोया रहता हूं किसकी यादों में।

मेरा दिल ए खुद समझ पाता नहीं है।


सपनों में देखता हूं सारे ज़हान को मैं।

खुदा बस उन्हीं का ख़्वाब दिखाता नहीं है।


लोग कहते हैं दुनिया खुबसूरत है बहुत।

तो इन नज़रों को कोई और क्यों भाता नहीं है।


कितनी भी करलू मैं हसने की कोशिश।

फिर भी मेरा चेहरा मुस्कुराता नहीं है।


बिना उनके शायद जी न पाउंगा मैं।

ए बात कोई उनकों क्यों बताता नहीं है।


सुना है सच्चा प्यार हो तो रब भी झुकता है।

तो खुदा उनसे क्यों मुझे मिलाता नहीं है।


मैं जानता हूं ए ख़्वाहिस ए मेरी तम्मना है झूठी।

फिर ए दिल क्यों बिना उनके रह पाता नहीं है।

---दिलीप---






वो जहां रहें खुश रहें

वो जहां रहें खुश रहें ये दिल फरियाद करता है।
हर पल अपनी दुवाओ से उनकों आबाद करता है।
बीच सफ़र में जिसने तन्हा छोड़ दिया था हमे।
जाने क्यों दिल आज भी उन्हीं को याद करता है....
---दिलीप---

Tuesday, July 12, 2011

कभी-कभी ज़िन्दगी खुबशुरत सी लगती है

कभी-कभी इस दिल को किसी की जरुरत सी लगती है।

इन आंखों को हर इक शक्ल उन्हीं की सुरत सी लगती है।

जब कभी भी लेता हुं उनका नाम अपने नाम के साथ।

तो न जाने क्यों ये ज़िन्दगी और खुबशुरत सी लगती है.....

---दिलीप---

Tuesday, June 28, 2011

हसने का एक बहाना मिला....

दूनियां की भीड़ में हर कोई हमें बेगाना मिला।
बात एक दिन की नहीं दर्द हमकों रोजाना मिला।
हर ठोकर को हमने खुदा का रहम समझा।
आज कई दिनों बाद हमें हसने का एक बहाना मिला....
---दिलीप---

इक दिन इस दुनियां में हमारा भी नाम होगा

सूरज की तरह हमारा भी पहचान होगा।
गम भूलाकर हाथों में खुशी का जाम होगा।
ए जिन्दगी तु हम पर यू हसाँ मत कर।
इक दिन इस दुनियां में हमारा भी नाम होगा....
---दिलीप---

किस्मत की रेखा

हमारी इन हाथों में ये किस्मत की जो रेखा है।
जिसने हमारी खुशियों को चंद लमहों में समेटा है।
हमने में भी इस दुनियां में रिश्ते खूब बनाए थे।
जो अपने थें उनकों भी इक पल में बदलते देखा है....
---दिलीप---

बचपन के दिन.....

छोड़ दिया इक दिन तनहा मुझको जो उम्र भर हमारे थे।
कत्ल उसी ने मेरा कर दिया हम जीते जिसके सहारे थे।
ना जाने ये ज़िन्दगी किस मोड़ पर लाई है मुझको।
हमारे लिए तो वो बचपन के दिन ही कितने प्यारे थे....
---दिलीप---

Monday, June 6, 2011

साथ छूट जाये तो रिश्ते बदल जाते है....






सामने मिलने पर अपने पन का एहसास जताते हैं।
हम बस तुम्हारें है ये हमें समझातें है।
लोगों को एक पल में बदलते हमने भी देखा है।
यहां तो साथ छूट जाये तो रिश्ते बदल जाते है....
---दिलीप---

Wednesday, May 18, 2011

जिसकी तलाश थी उसको दिल पा गया है..





उनका खुमार हम पर छा गया है।
चेहरे का भोलापन इस दिल को भा गया है।
इक अरसे से मेरी नजरे ढूंढती थी किसी को।
अब लगता है जिसकी तलाश थी उसको दिल पा गया है...
---दिलीप---

यादों को क्या याद करें....















यादों को क्या याद करें ये आंखे नम कर देती है।

अच्छी तो शराब है जो हर गम को मरहम कर देती है।

जिन्दगी अब तु ही बता कैसे तुझसे प्यार करुं।

तेरी हर एक सुबह मेरी उम्र कम कर देती है।

---दिलीप---

Tuesday, May 10, 2011

unka chehra....























मिलते हैं हजार लोग मुझसे एक उन्हीं का चेहरा नजर आता नहीं है।
ये क्या हुआ है मुझे मेरा दिल ही समझ पाता नहीं है।
जब से देखीं है मेरी नजरों ने एक झलक उनकी
ना जाने इस दिल को और कोई क्यों भाता नहीं है....
---
दिलीप--

Saturday, May 7, 2011

meri maa......

















माँ तुम्हारे लिए...
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मां तुने हमेशा सिखाया क्या गलत क्या सही है।
मुझे अपने हाथों से खिलाकर तू भुखी रही है।
मैं थोड़ा बदल भी गया पर तू हमेशा वहीं है।
ऐ मेरी मां तेरे बिना मेरी कोई अहमियत नहीं है।
---दिलीप---

Thursday, May 5, 2011

khubsurat zindgi....

















काश! उनकी आंखों में बस हमारी सूरत होती।
हमें उनकी और उन्हें हमारी जरुरत होती।
हम जो चाहते वो हमे मिल जाता अगर,
तो सबकी जिन्दगी कितनी खुबसूरत होती......
---दिलीप---

Saturday, April 30, 2011

ye zindgi bhi na...

















एक सच्चाई …
ऐ खुदा ये तेरी कैसी है माया...
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किसी पे इतना है मेहरबान कि उसका हर दिन होली हर रात दीवाली है।
वहीं किसी से इतना है खफा कि उसका पेट हफ्तों से खाली है....
---दिलीप---

Thursday, April 28, 2011

ye zindgi bhi na....










इक अरसे से अंधेरे में था आज हंसी सुबह की शुरुआत हो गई।
आंखे तरस गई थी जिन्हें देखने को आज उनसे मुलाकात हो गई।
मिलती थी हर रोज मगर कभी बात करने की सूरत ना हुई।
ये खुदा का रहम ही है जो आज उनसे थोड़ी सी बात हो गई....
---
दिलीप---


Friday, April 22, 2011

ye zindgi bhi na....










कभी अंधेरों से ना डरता था मैं, अब उजालों से भी नजरे बचाता हूं मैं।

हमें पता है अब वो हमारे नहीं है, फिर ना जाने क्यों उन्हें अपना बताता हूं मैं।

---दिलीप---

ye zindgi bhi na.....


ना जाने क्यों तकदीर रुठी है हमसे, कि अब खुशियों का कोई ठिकाना नहीं है।
चाहता हूं मुस्कुराना औरों के जैसे, पर हसने के लिए कोई बहाना नहीं है....
---दिलीप--


ye zindgi bhi na.....


हर खुशी आएगी पहले ग़म उठाना सीख लो, अगर रौशनी पानी है तो घर जलाना सीख लो
लोग मुझसे पूछते हैं तुम शायरी कैसे करते हो, मैं ये कहता हूं किसी से दिल लगाना सीख लो....
--दिलीप-




कौन खुश है इस दुनिया में सबके अपने- अपने गम है।
फर्क बस इतना है किसी के ज्यादा तो किसी के कम है.....
--दिलीप--




हम उन्हें अपना मानते है ये हमारा करम है।
वो कहते है कम बोलो तुम्हे मेरी कसम है।
उन्हें लगता है हम मुस्कुराते है बहुत ज्यादा।
काश वो समझते इस मुस्कुराहट में छुपे कितने गम है....
--दिलीप--


जब हमने अपने दिल का हाल उन्हे सुना दिया।
बड़े प्यार से उन्होंने इस दिल को ठुकरा दिया।
जख्म देकर कहते है, आप चुप क्यों रहते हो।
उन्हें ये नहीं पता की हमें खामोश तुमने ही बना दिया...
--दिलीप--

ये जिन्दगी रोज गुजरती है कई सवालों की तरह।
हमने चाहा उन्हें बस चाहने वालो की तरह।
मेरे ख्वाब इतने कमजोर तो ना थे शायद।
की उन्होंने भुला दिया बेवजह ख्यालों की तरह...
--दिलाप--


यू तो गमों में भी हस लेता था मैं । आज क्यो बेवजह उदास होने लगा हूं मैं।
बरसों से हथेलिया खाली थी मेरी। फिर आज क्यों लगता है सब खोने लगा हूं मैं......
--दिलीप--


छोटी सी जिन्दगी हजार लोग, बिछड़ने के बाद कौन किसको पहचानता है।
अरमां बहुत जल्दी पुरे कर लो, जिन्दगी कब साथ छोड़ दे ये कौन जानता है....
-दिलीप-


ये जिन्दगी भी ना..मंजिल मिलने से पहले साथ छोड़ देती है।
सपने दिखाती हैं बहुत पर हकिकत होने पहले उन्हें तोड़ देती है।
जिनको पाने कि तम्मना हो दिल में, वो पुरी नहीं होती।
और जिसकी ख्वाहिश ना हो उनसे ही रिस्ता जोड़ देती है...
--दिलीप--



मैं जनता हूं ये ख्वाब झूठे है, ये खुशियां अधुरी है।
मगर जिन्दा रहने के लिए, कुछ गलतफहमियां भी जरुरी है...

--दिलीप---


कभी देखा ही नही उनको आँख भर के, रुबरु होते ही उनके पलके झूक जाते है।
कह दो उनसे गुजरे हमारी गलियों से आहिस्ता, कदमों की आहट से धड़कन तक रुक जाते है.....


हर तरह से उन्हें मनाया, पर वो इस दिल के पास नही आते।
वो कहते हैं कम बोला करो, ज्यादा बोलने वोले हमे रास नही आते....


ना जाने क्या ख़ता हुई हमसे, जो हर पल वो इस दिल को आजमाते हैं।
मिलते हैं हर रोज हमसे, कैसे कहें कि हम उन्हें कितना चाहते हैं...



जिन्दगी के रंग भी कितने अजीब होते है, जूदा वही होते है जो अक्सर दिल के करीब होते है।
चाहे जितना तौल ले खुदको वो हीरो से, पर रिस्तो के मामले में वही सबसे गरीब होते है........



कुछ ऐसी चली किस्मत की आधी, कि हर एक शक्स बेगाना हो गया...
शिकवा किससे करे अपनी तन्हाई का, जब खुद का ही साया अंजना हो गया.....



हम तो खोए रहते है बस तेरी यादो में, ना जाने तुझे इसकी ख़बर क्यो ना लगी..
मेरा सारा घर जल गया मेरे सोने से, पर मेरी ये आखें तेरे सपनों से ना जगी...........


दिल तोड़ने वालो को दिल टूटने के दर्द का अंदाजा क्या होगा।
उनके लिए आसूओं की अहमियत,पानी की बूंदों से ज्यादा क्या होगा।


सपनो की दूनिया कितनी अजीब होती है। झूठी ही सही पर खुशी नसीब होती है।
बेशक आते हैं सपने बस कुछ पल के लिये। पर इन पलो में ज़िन्दगी ज़न्नत के क़रीब होती है..............

हम तो मौजूद थे अँधेरों में उजालों कि तरह ...
तुमने चाहा हि नहीं चाहने वालों कि तरह....


आज ज़िन्दगी ने फिर अपना रंग दिखा दिया..अपने रंगो को भरने के लिये हमारे अरमानों को जला दिया......






ye zindgi bhi na.....

ना जाने क्यों तकदीर रुठी है हमसे, कि अब खुशियों का कोई ठिकाना नहीं है।
चाहता हूं मुस्कुराना औरों के जैसे, पर हसने के लिए कोई बहाना नहीं है....
---दिलीप---