Monday, September 24, 2012

प्यार सबको मिल जाए ये ज़रुरी नहीं....

ख़्वाहिशे पालना तो इंसान की फ़ितरत में है।
पर हर पल सबकी ख़्वाहिशे होती पूरी नहीं।
प्यार ज़िन्दगी में हर कोई करता तो है।
पर प्यार सबको मिल जाए ये ज़रुरी नहीं....
--दिलीप--

बचपन के दिन ........

वो बचपन के दिन वो यारों की टोली।
वो दीवाली की रातें वो रंगों की होली।

वो स्कूल की मस्ती वो घर पर शौतानी।
वो परीयों की दूनियां वो दादी मां की कहानी।

वो पापा का गुस्सा वो मां का दुलार।
वो सूखी रोटी के साथ आम का अचार।

वो चोर पुलिस के खेल वो पतंगे उड़ाना।
वो बारिश का पानी दिन भर नाव चलाना।

तब आता था मज़ा जितना बहता था पसीना।
नहीं थी कोई फ्रिक बस ख़ुद में था जीना।

धीरे- धीरे समय गुज़रा फिर बीती जवाना।
मेरा वो हसमुख चेहरा कहीं भूल गया मुस्कुराना।

अब तो वो बारिश बिन मौसम हो जाती है।
जब सोचता हूं बचपन को आंखें नम हो जाती हैं।

ए ख़ुदा मुझपर तू एक एहसान कर दे।
फिर से वही बचपन तू मेरे नाम कर दे।
--दिलीप--