वो बचपन के दिन वो यारों की टोली।
वो दीवाली की रातें वो रंगों की होली।
वो स्कूल की मस्ती वो घर पर शौतानी।
वो परीयों की दूनियां वो दादी मां की कहानी।
वो पापा का गुस्सा वो मां का दुलार।
वो सूखी रोटी के साथ आम का अचार।
वो चोर पुलिस के खेल वो पतंगे उड़ाना।
वो दीवाली की रातें वो रंगों की होली।
वो स्कूल की मस्ती वो घर पर शौतानी।
वो परीयों की दूनियां वो दादी मां की कहानी।
वो पापा का गुस्सा वो मां का दुलार।
वो सूखी रोटी के साथ आम का अचार।
वो चोर पुलिस के खेल वो पतंगे उड़ाना।
वो बारिश का पानी दिन भर नाव चलाना।
तब आता था मज़ा जितना बहता था पसीना।
नहीं थी कोई फ्रिक बस ख़ुद में था जीना।
धीरे- धीरे समय गुज़रा फिर बीती जवाना।
मेरा वो हसमुख चेहरा कहीं भूल गया मुस्कुराना।
अब तो वो बारिश बिन मौसम हो जाती है।
जब सोचता हूं बचपन को आंखें नम हो जाती हैं।
ए ख़ुदा मुझपर तू एक एहसान कर दे।
फिर से वही बचपन तू मेरे नाम कर दे।
--दिलीप--
तब आता था मज़ा जितना बहता था पसीना।
नहीं थी कोई फ्रिक बस ख़ुद में था जीना।
धीरे- धीरे समय गुज़रा फिर बीती जवाना।
मेरा वो हसमुख चेहरा कहीं भूल गया मुस्कुराना।
अब तो वो बारिश बिन मौसम हो जाती है।
जब सोचता हूं बचपन को आंखें नम हो जाती हैं।
ए ख़ुदा मुझपर तू एक एहसान कर दे।
फिर से वही बचपन तू मेरे नाम कर दे।
--दिलीप--
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