
हर रोज मिलते हैं हज़ार लोग मुझसे।
एक उन्हीं का चेहरा नज़र आता नहीं है।
जाने मैं खोया रहता हूं किसकी यादों में।
मेरा दिल ए खुद समझ पाता नहीं है।
सपनों में देखता हूं सारे ज़हान को मैं।
खुदा बस उन्हीं का ख़्वाब दिखाता नहीं है।
लोग कहते हैं दुनिया खुबसूरत है बहुत।
तो इन नज़रों को कोई और क्यों भाता नहीं है।
कितनी भी करलू मैं हसने की कोशिश।
फिर भी मेरा चेहरा मुस्कुराता नहीं है।
बिना उनके शायद जी न पाउंगा मैं।
ए बात कोई उनकों क्यों बताता नहीं है।
सुना है सच्चा प्यार हो तो रब भी झुकता है।
तो खुदा उनसे क्यों मुझे मिलाता नहीं है।
मैं जानता हूं ए ख़्वाहिस ए मेरी तम्मना है झूठी।
फिर ए दिल क्यों बिना उनके रह पाता नहीं है।
---दिलीप---
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