Friday, April 22, 2011

ye zindgi bhi na.....

ना जाने क्यों तकदीर रुठी है हमसे, कि अब खुशियों का कोई ठिकाना नहीं है।
चाहता हूं मुस्कुराना औरों के जैसे, पर हसने के लिए कोई बहाना नहीं है....
---दिलीप---

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